साँची स्तूप का इतिहास और रोचक बातें | Sanchi Stupa History in Hindi

Sanchi Stupa / साँची स्तूप बौद्ध स्मारक हैं, जो कि तीसरी शताब्दी ई.पू. से बारहवीं शताब्दी के बीच के हैं। यह स्तूप एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है जो भोपाल शहर से लगभग 46 किमी दूर मध्यप्रदेश के साँची गाँव में स्थित है।

यहाँ तीन स्तूप हैं और ये देश के सर्वाधिक संरक्षित स्तूपों में से एक हैं। ‘साँची’ 1989 में यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल सूची में शामिल हैं।

साँची स्तूप की जानकारी – Sanchi Stupa Information in Hindi

Contents

  • 1 साँची स्तूप की जानकारी – Sanchi Stupa Information in Hindi
  • 2 साँची का स्तूप का इतिहास – Sanchi Stupa History In Hindi
  • 3 साँची स्तूप के बारे में रोचक तथ्य – Interesting Facts About Sanchi Stupa In Hindi

सांची का महान मुख्य स्तूप, मूलतः सम्राट अशोक महान ने तीसरी शती, ई.पू. में बनवाया था। इसके केन्द्र में एक अर्धगोलाकार ईंट निर्मित ढांचा था, जिसमें भगवान बुद्ध के कुछ अवशेष रखे थे। इसके शिखर पर स्मारक को दिये गये ऊंचे सम्मान का प्रतीक रूपी एक छत्र था।

इसका निर्माण कार्य का कारोबार अशोक महान की पत्नी देवी को सौपा गया था, जो विदिशा के व्यापारी की ही बेटी थी। साँची उनका जन्मस्थान और उनके और सम्राट अशोक महान के विवाह का स्थान भी था। यह प्रेम, शांति, विश्वास और साहस के प्रतीक हैं। इसकी उंचाई लगभग 16.4 मीटर है और इसका व्यास 36.5 मीटर है।

सांची के स्तूप दूर से देखने में भले मामूली अर्द्धगोलाकार संरचनाएं लगती हैं लेकिन इसकी भव्यता, विशिष्टता व बारीकियों का पता सांची आकर देखने पर ही लगता है। इसीलिए देश-दुनिया से बडी संख्या में बौद्ध मतावलंबी, पर्यटक, शोधार्थी, अध्येता इस बेमिसाल संरचना को देखने चले आते हैं।

सांची के स्तूपों का निर्माण कई कालखंडों में हुआ जिसे ईसा पूर्व तीसरी सदी से बारहवीं सदी के मध्य में माना गया है। ईसा पूर्व 483 में जब गौतम बुद्ध ने देह त्याग किया तो उनके शरीर के अवशेषों पर अधिकार के लिए उनके अनुयायी राजा आपस में लडने-झगडने लगे।

अंत में एक बौद्ध संत ने समझा-बुझाकर उनके शरीर के अवशेषों के हिस्सों को उनमें वितरित कर समाधान किया। इन्हें लेकर आरंभ में आठ स्तूपों का निर्माण हुआ और इस प्रकार गौतम बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार इन स्तूपों को प्रतीक मानकर होने लगा।

साँची का स्तूप का इतिहास – Sanchi Stupa History In Hindi

यह प्रसिद्ध स्थान, जहां अशोक द्वारा निर्मित एक महान स्तूप, जिनके भव्य तोरणद्वार तथा उन पर की गई जगत प्रसिद्ध मूर्तिकारी भारत की प्राचीन वास्तुकला तथा मूर्तिकला के सर्वोत्तम उदाहरणों में हैं।

बौद्ध की प्रसिद्ध ऐश्वर्यशालिनी नगरी विदिशा (भीलसा) के निकट स्थित है। ऐसा लगता हैं कि बौद्धकाल में साँची, महानगरी विदिशा की उपनगरी तथा विहार-स्थली थी।

सर जोन मार्शल के मत में कालिदास ने नीचगिरि नाम से जिस स्थान का वर्णन मेघदूत में विदिशा के निकट किया है, वह साँची की पहाड़ी ही है।

कहा जाता है कि अशोक ने अपनी प्रिय पत्नी देवी के कहने पर ही साँची में यह सुंदर स्तूप बनवाया था। देवी, विदिशा के एक श्रेष्ठी की पुत्री थी और अशोक ने उस समय उससे विवाह किया था जब वह अपने पिता के राज्यकाल में विदिशा का कुमारामात्य था।

वास्तविक ईंटो के स्तूप को बाद में शुंगा के समय में पत्थरो से ढँका गया था। अशोकवादना के आधार पर, ऐसा माना गया था की स्तूप को दूसरी शताब्दी में कही-कही पर तोडा-फोड़ा गया था, शुंगा साम्राज्य के विस्तार को लेकर ऐसा माना जाता है की शुंगा के सम्राट ने पुष्यमित्र शुंगा ने मौर्य साम्राज्य का सेनापति बनकर उसे अपना लिया था।

ऐसा कहा जाता है की पुष्यमित्र ने ही वास्तविक स्तूप को क्षति पहुचाई थी और तोड़-फोड़ की थी और उनके बेटे अग्निमित्र ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। बाद में शुंगा के शासनकाल में ही, स्तूप को पत्थरो से सजाया गया और अब स्तूप अपने वास्तविक आकर से और भी ज्यादा विशाल हो गया था।

इसका व्यास 70 फीट बढकर 120 फीट व ऊंचाई 54 फीट हो गई। एक मध्य भाग में एक चक्र भी लगा हुआ था जिसे स्थानिक लोग धर्म चक्र भी कहते थे लेकिन बाद में वही चक्र कानून के चक्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसका पुनर्निर्माण करते समय यहाँ चार आभूषित द्वारा भी बनाये गए थे।

साँची से मिलने वाले कई अभिलेखों में इस स्थान को ‘काकनादबोट’ नाम से अभिहित किया गया है। इनमें से प्रमुख 131 गुप्त संवत (450-51) ई. का है जो कुमारगुप्त प्रथम के शासनकाल से संबंधित है। इसमें बौद्ध उपासक सनसिद्ध की पत्नी उपासिका हरिस्वामिनी द्वारा काकनादबोट में स्थित आर्यसंघ के नाम कुछ धन के दान में दिए जाने का उल्लेख है। एक अन्य लेख एक स्तंभ पर उत्कीर्ण है जिसका संबंध गोसुरसिंहबल के पुत्र विहारस्वामिन से है। यह भी गुप्तकालीन है।

सांची की स्थापना बौद्ध धर्म व उसकी शिक्षा के प्रचार-प्रसार में मौर्य काल के महान राजा अशोक का सबसे बडा योगदान रहा। बुद्ध का संदेश दुनिया तक पहुंचाने के लिए उन्होंने एक सुनियोजित योजना के तहत कार्य आरंभ किया। सर्वप्रथम उन्होंने बौद्ध धर्म को राजकीय प्रश्रय दिया। उन्होंने पुराने स्तूपों को खुदवा कर उनसे मिले अवशेषों के 84 हज़ार भाग कर अपने राज्य सहित निकटवर्ती देशों में भेजकर बडी संख्या में स्तूपों का निर्माण करवाया।

इन स्तूपों को स्थायी संरचनाओं में बदला ताकि ये लंबे समय तक बने रह सकें। सम्राट अशोक ने भारत में जिन स्थानों पर बौद्ध स्मारकों का निर्माण कराया उनमें सांची भी एक था जिसे प्राचीन नाम कंकेनवा, ककान्या आदि से जाना जाता है। तब यह बौद्ध शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हो चुका था।

ह्वेन सांग के यात्रा वृत्तांत में बुद्ध के बोध गया से सांची जाने का उल्लेख नहीं मिलता है। संभव है सांची की उज्जयिनी से निकटता और पूर्व से पश्चिम व उत्तर से दक्षिण जाने वाले यात्रा मार्ग पर होना भी इसकी स्थापना की वजहों में से रहा हो।

सांची की कीर्ति राजपूत काल तक बनी रही किंतु औरंगजेब के काल में बौद्ध धर्म का केंद्र सांची गुमनामी में खो गया। उसके बाद यहां चारों ओर घनी झाडियां व पेड़ उग आए।

19वीं सदी में कर्नल टेलर यहां आए तो उन्हें सांची के स्तूप बुरी हालत में मिले। उन्होंने उनको खुदवाया और व्यवस्थित किया। कुछ इतिहासकार मानते हैं उन्होंने इसके अंदर धन संपदा के अंदेशे में खुदाई की जिससे इसकी संरचना को काफ़ी नुकसान हुआ।

बाद में पुराविद मार्शल ने इनका जीर्णोद्धार करवाया। चारों ओर घनी झाड़ियों के मध्य सांची के सारे निर्माण का पता लगाना और उनका जीर्णोद्धार कराके मूल आकार देना बेहद कठिन था, किंतु उन्होंने बखूबी से इसकी पुरानी कीर्ति को कुछ हद तक लौटाने में मदद की।

साँची स्तूप के बारे में रोचक तथ्य – Interesting Facts About Sanchi Stupa In Hindi

1). कुछ लोगो के अनुसार स्तूप के देखने के लिये आने वाले विदेशी लोग भी बुद्धा के भक्त हो जाते है और उन्हें पूजने लगते है। बौद्ध स्तूप पर कयी प्रकार के त्यौहार भी मनाये जाते है।

2). भारत में साँची का स्तूप ही बेहद प्राचीन माना जाता है। बौद्ध धर्म के लोगो के लिये यह एक पावन तीर्थ के ही समान है। साँची के स्तूप शांति, पवित्रतम, धर्म और साहस के प्रतिक माने जाते है।

3). यह स्तूप एक ऊंची पहाड़ी पर निर्मित है। इसके चारों ओर सुंदर परिक्रमापथ है। बालु-प्रस्तर के बने चार तोरण स्तूप के चतुर्दिक् स्थित हैं जिन के लंबे-लंबे पट्टकों पर बुद्ध के जीवन से संबंधित, विशेषत: जातकों में वर्णित कथाओं का मूर्तिकारी के रूप में अद्भुत अंकन किया गया है। इस मूर्तिकारी में प्राचीन भारतीय जीवन के सभी रूपों का दिग्दर्शन किया गया है। मनुष्यों के अतिरिक्त पशु-पक्षी तथा पेड़-पौधों के जीवंत चित्र इस कला की मुख्य विशेषता हैं।

4). सरलता, सामान्य, और सौंदर्य की उद्भभावना ही साँची की मूर्तिकला की प्रेरणात्मक शक्ति है। बुद्ध स्तूप, साँची इस मूर्तिकारी में गौतम बुद्ध की मूर्ति नहीं पाई जाती क्योंकि उस समय तक बुद्ध को देवता के रूप में मूर्ति बनाकर नहीं पूजा जाता था।

5). ‘स्तूप’ शब्द संस्कृत व पाली से निकला माना जाता है जिसका अर्थ होता है ‘ढेर’। आरंभ में केंद्रीय भाग में तथागत के अवशेष रख उसके ऊपर मिट्टी पत्थर डालकर इनको गोलाकार आकार दिया गया। इनमें बाहर से ईटों व पत्थरों की ऐसी चिनाई की गई ताकि खुले में इन स्तूपों पर मौसम का कोई प्रभाव न हो सके। स्तूपों में मंदिर की भांति कोई गर्भ गृह नहीं होता। अशोक द्वारा सांची में बनाया गया स्तूप इससे पहले के स्तूपों से विशिष्ट था।

6). सांची के स्तूपों के समीप एक बौद्ध मठ के अवशेष हैं जहां बौद्ध भिक्षुओं के आवास थे। यही पर पत्थर का वह विशाल कटोरा है जिससे भिक्षुओं में अन्न बांटा जाता था। यहां पर मौर्य, शुंग, कुषाण, सातवाहन व गुप्तकालीन अवशेषों सहित छोटी-बडी कुल चार दर्जन संरचनाएं हैं।

और अधिक लेख – 
  • चारमीनार का इतिहास और रोचक बातें
  • खजुराहो मंदिर का इतिहास और रोचक तथ्य
  • हुमायूँ के मकबरे का इतिहास और जानकारी
  • ताजमहल का सच इतिहास
  • राजस्थान की जानकारी, तथ्य, इतिहास

Please Note : – Sanchi Stupa History & Story In Hindi मे दी गयी Information अच्छी लगी हो तो कृपया हमारा फ़ेसबुक (Facebook) पेज लाइक करे या कोई टिप्पणी (Comments) हो तो नीचे  Comment Box मे करे। Sanchi Stupa Facts & Essay In Hindi व नयी पोस्ट डाइरेक्ट ईमेल मे पाने के लिए Free Email Subscribe करे, धन्यवाद।

Related Posts

आरएसएस ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ जानकारी, इतिहास RSS Information In Hindi

RSS in Hindi / राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। यह भारत का एक दक्षिणपंथी, हिन्दू राष्ट्रवादी, अर्धसैनिक, स्वयंसेवक संगठन हैं, जो भारत…

मुग़ल साम्राज्य का इतिहास और जानकारी | Mughal Empire History In Hindi

Mughal Empire / मुग़ल साम्राज्य एक इस्लामी तुर्की-मंगोल साम्राज्य था जो 1526 में शुरू हुआ, जिसने 17 वीं शताब्दी के आखिर में और 18 वीं शताब्दी की…

चारमीनार का इतिहास और रोचक बातें | Charminar History in Hindi

Charminar / चार मीनार भारत के तेलंगाना राज्य के हैदराबाद में स्थित विश्व प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण स्मारक है। वर्तमान में यह स्मारक हैदराबाद की वैश्विक धरोहर बनी…

उत्तर प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थल | Tourist Places in Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थल | Tourist Places in UP Tourist Places in UP – उत्तर प्रदेश के प्रमुख पर्यटन स्थल निम्नलिखित हैं: मथुरा      कृष्ण जन्मभूमि ·…

उत्तर प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ | Tribes of Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ | Tribes of Uttar Pradesh Tribes of Uttar Pradesh – उत्तर प्रदेश की प्रमुख जनजातियाँ निम्न प्रकार हैं: उत्तर प्रदेश की प्रमुख अनुसूचित…

उत्तर प्रदेश के प्रमुख मेले व् उत्सव / Major Fairs and Festivals of Uttar Pradesh

जब किसी एक स्थान पर बहुत से लोग किसी सामाजिक ,धार्मिक एवं व्यापारिक या अन्य कारणों से एकत्र होते हैं तो उसे मेला कहते हैं। भारतवर्ष में…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *