मध्यप्रदेश के टेक्सटाइल
मध्यप्रदेश के लोगों में रचनात्मक दृष्टि और कलात्मक कौशल को लेकर हमेशा से जुनून रहा है। कारीगरों की अद्भुत रचनाएं और कला के विविध रूप, मध्यप्रदेश में कई सदियों से अपना स्थान बनाए हुए है। लोहे का धातु, लकड़ी की उपलब्धता, पीतल की चमक, चमड़े की सरगर्मी, कागज की लुगदी जैसी सारी चीजें कारीगरों के हाथों में पिघल जाती हैं और आकर्षक रचना के साथ एक खुबसूरत रूप ले लेती है। चंदेरी, टसर, महेश्वर जैसी हाथ की बुनी साड़िया, टाई एन्ड डाई, बाटीक, आभूषण, धातु और चमड़े की कलात्मक चीजें, टेराकोटा, कांच और स्टोनवर्क जैसी चीजें कलात्मकता की एक सुंदर दुनिया बनाती है।
आलंकारिक आकृतियों के साथ हैन्ड ब्लॉक प्रिंटेड कपड़ा, मध्यप्रदेश की विशेषता रहा है। साड़ी, ओढनी, टेबल क्लॉथ, बेड कवर और अन्य कपडों पर इन छापों का मुद्रण किया जाता है। पारंपरिक प्रिंट मे तानवाला और तीन आयामी प्रभाव दिखाई देता है। बाग नदी के उच्च प्रति के तांबे से व्युत्पन्न समृद्धि और चमक, वनस्पतीजन्य और प्राकृतिक रंग प्रदान करती है। हल्दी से पीला रंग, अनार के छिलके से गुलाबी रंग और नील से नीला रंग मिल जाता है। रंग पूरी तरह से कपड़े में समा जाए, इसलिए राल, मोम और तेल का प्रयोग किया जाता है। मुद्रण ब्लॉक (छापे) सागौन की लकडी से बनते है, जिन पर पारंपरिक लकड़ी नक़्क़ाश जटिल डिजाइन बनाते हैं। राज्य के पश्चिमी भाग के साथ, मालवा और निमर क्षेत्र में ब्लॉक मुद्रण किया जाता है और अब बाघ क्षेत्र में भी पारंपरिक तथा चंदेरी और माहेश्वरी साड़ीयों पर मुद्रित ब्लॉक का अभिनव प्रयोग होने लगा है। भैरवगढ और इंदौर के ब्लॉक प्रिंट में अद्वितीय बाटीक काम दिखाई देता है। बाटीक की प्रक्रिया में मुलायम सूती कपड़े पर गर्म पिघला मोम डाला जाता है। कपड़े को विभिन्न ठंडे रंगों में डूबोया जाता है और कपड़े पर गर्म उबलता पानी डाला जाता है। परिणाम स्वरूप कपडे पर एक आकर्षक डिजाइन और पैटर्न बन जाता है।
साड़ियां चंदेरी
अभ्यासपूर्ण हाथ धीमी गती से कुशलता से चलते है। एक और सपना हकीकत बन जाता है। एक अति सुंदर साड़ी निखर आती है। चंदेरी के छोटे से मध्ययुगीन शहर ने न केवल सदियों से बुनाई की दुर्लभ कला की रक्षा की है, लेकिन साथ-साथ राजसी और आधुनिक, दोनों तरह की सोच वाली महिलाओं की अभिरूचि के अनुकूल नए रूपों और डिजाइनों को विकसित किया है। चंदेरी के बुनकरों द्वारा रेशम और कपास की बनी तथा अतीत में कुलीनता का संरक्षण करनेवाली यह साड़ियां मोहकता और वैभव का उमदा प्रतीक हैं। बुनकरों द्वारा बुनी गई डिजाइनर साड़ियां पारखी नजरों को लुभा रही है और विशेष अवसरों के लिए पसंदीदा बनी हुई है। इन साड़ियों पर बनी फल, फूल, पत्ते, और पक्षियों की रचना, प्रकृति की सुहानी याद दिलाती है। साड़ियों के चमकीले और अद्वितीय उत्कृष्ट रंग अपने द्वारा मानो प्रकृति की सुंदरता के प्रतिक प्रतीत होते है।
टसर
“अर्जुन”, “सफा” और “साई” वृक्षों पर विशेष रूप से पाले गए कोश से प्राप्त ‘टसर’ को गहरे पीले, सोने जैसे, शहद जैसे और क्रीम रंगों मे पाया जाता है। पवित्रता, सुंदरता और वैभव का प्रतीक मानी जानेवाली ‘टसर’ साड़ी उत्सव के दौरान महिलाओं के लिए सबसे पसंदीदा विकल्प बनी रही है। बदलते समय के साथ ‘टसर’ ने अपने परिवेश से रंग लेकर सवयं में बदलाव लाया है। भव्य और सुंदर ‘टसर’ साड़ी, पारंपरिक तथा आधुनिक डिजाइनरों की भी पहली पसंद रही हैं।
माहेश्वरी
18 वीं सदी ने रानी अहिल्याबाई होलकर की प्रतिभा से प्रेरित कला के इस रूप को खिलते देखा। यह माहेश्वरी साड़ी, जरी से अलंकृत थी जिसमें रेशम और कपास का सुंदर मेल था। अपने सामर्थ्य और लचिलेपन के उत्कृष्ट संयोजन के कारण इसने दुनिया भर में प्रशंसक पाए है। “गुलदस्तां”, “घुंघरू”, “मयूर”, “चान्द तारा” जैसे इस साड़ी की किस्मों के नाम भी अपने आप में कविता है। इसके रंग कोमलता से कानाफूसी करते है। आकर्षकता और दीप्ति, माहेश्वरी साड़ी साड़ी की पहचान हैं।
दरीयां और कालीन
हाथ से बुनी हुई दरीयां और कालीन, विभिन्न शैली की आकृतियों के साथ विषम रंग के मिश्रण में रंगी हुई होती हैं। हाथ से बुनी ज्यामितीय आकृतियों वाली मातहत रंग की दरीयों के लिए मंदसौर मशहूर है। सतना की चीर से बनी दरीयां, सीधी और शहडोल की ऊनी दरीयां तथा जोबत मे भीलों द्वारा बनाई जानेवाली पुंजा दरीयां भी मशहूर है। ग्वालियर के साथ मुरैना भी, फ़ारसी कालीन से लेकर सस्ती किस्मों के कालीन बुनाई का एक प्रमुख स्थान है।