विनायक दामोदर सावरकर
भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे। उन्हें प्रायः स्वातंत्र्यवीर , वीर सावरकर के नाम से सम्बोधित किया जाता है। हिन्दू राष्ट्र की राजनीतिक विचारधारा (हिन्दुत्व) को विकसित करने का बहुत बड़ा श्रेय सावरकर को जाता है। वे न केवल स्वाधीनता-संग्राम के एक तेजस्वी सेनानी थे अपितु महान क्रान्तिकारी, चिन्तक, सिद्धहस्त लेखक, कवि, ओजस्वी वक्ता तथा दूरदर्शी राजनेता भी थे। वे एक ऐसे इतिहासकार भी हैं जिन्होंने हिन्दू राष्ट्र की विजय के इतिहास को प्रामाणिक ढंग से लिपिबद्ध किया है। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर का सनसनीखेज व खोजपूर्ण इतिहास लिखकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया था।
वे एक वकील, राजनीतिज्ञ, कवि, लेखक और नाटककार थे। उन्होंने परिवर्तित हिंदुओं के हिंदू धर्म को वापस लौटाने हेतु सतत प्रयास किये एवं आंदोलन चलाये। सावरकर ने भारत के एक सार के रूप में एक सामूहिक “हिंदू” पहचान बनाने के लिए हिंदुत्व का शब्द गढ़ा। उनके राजनीतिक दर्शन में उपयोगितावाद, तर्कवाद और सकारात्मकवाद, मानवतावाद और सार्वभौमिकता, व्यावहारिकता और यथार्थवाद के तत्व थे। सावरकर एक कट्टर तर्कसंगत व्यक्ति थे जो सभी धर्मों में रूढ़िवादी विश्वासों का विरोध करते थे।
संक्षिप्त जीवन परिचय
नाम | विनायक दामोदर सावरकर |
जन्म तिथि | 28 मई 1883 , भागुर, नासिक, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 26 फरवरी 1966 (आमरण अनशन के कारण) |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शिक्षा | फर्ग्युसन कॉलेज, पुणे लंदन से बैरिस्टर (इंग्लैंड), मुंबई विश्वविद्यालय |
राजनीतिक दल | हिन्दू महासभा |
धर्म | हिन्दू |
उपलब्धियां | क्रांतिकारी संगठन “अभिनव भारत” की स्थापना एवं अखिल भारत हिन्दु महासभा के प्रेसिडेंट |
Veer Savarkar Popular Hindi Quotes/ वीर सावरकर के सुविचार
Quote 1 : अपने देश की, राष्ट्र की, समाज की स्वतन्त्रता – हेतु प्रभु से की गई मूक प्राथर्ना भी सबसे बड़ी अहिंसा का द्दोतक है.
Quote 2 : कर्तव्य की निष्ठा संकटों को झेलने में, दुःख उठाने में और जीवन – भर संघर्ष करने में ही समाविष्ट है. यश – अपयश तो मात्र योगायोग की बातें हैं.
Quote 3 : अन्याय का जड़ से उन्मूलन क्र सत्य –धर्म की स्थापना – हेतु क्रांति, रक्तचाप प्रतिशोध आदि प्रकृतिप्रदत्त साधन ही हैं. अन्याय के परिणामस्वरूप होनेवाली वेदना और उद्दण्डता ही तो इन साधनों की नियन्त्रणकत्री है.
Quote 4 : हमारी पीढी ऐसे समय में और ऐसे देश में पैदा हुई है कि प्रत्येक उदार एवं सच्चे हृदय के लिए यह बात आवश्यक हो गई है कि वह अपने लिए उस मार्ग का चयन करे जो आहों, सिसकियों और विरह के मध्य से गुजरता है. बस,यही मार्ग कर्म का मार्ग है.
Quote 5 : देशहित के लिए अन्य त्यागों के साथ जन-प्रियता का त्याग करना सबसे बड़ा और ऊँचा आदर्श है, क्योंकि – वर जनहित ध्येयं केवल न जनस्तुति:’ शास्त्रों में उपयुक्त ही कहा गया है.
Quote 6 : कष्ट ही तो वह चाक शक्ति है जो मनुष्य को कसौटी पर परखती है और उसे आगे बढ़ाती है.
Quote 7 : हिन्दू जाति की गृहस्थली है – भारत, जिसकी गोद में महापुरूष, अवतार, देवी-देवता और देव – जन खेले हैं. यही हमारी पितृभूमि और पुण्यभूमि है. यही हमारी कर्मभूमि है और इससे हमारी वंशगत और सांस्कृतिक आत्मीयता के सम्बन्ध जुड़े हैं.
Quote 8 : हमारे देश और समाज के माथे पर एक कलंक है – अस्पृश्यता .हिन्दू समाज के, धर्म के ,रास्त्र के करोड़ों हिन्दू बन्धु इससे अभिशप्त हैं. जब तक हम ऐसे बनाए हुए हैं, तब तक हमारे शत्रु हमें परस्पर लदवाकर, विभाजित क्र सफल होते रहेंगे. इस घातक बुराई को हमें त्यागना ही होगा.
Quote 9 : मन सृष्टि के विधाता द्वारा मानव-जाति को प्रदान किया गया एक ऐसा उपहार है, जो मनुष्य के परिवर्तनशील जीवन की स्थितियों के अनुसार स्वयं अपना रूप और आकार भी बदल लेता है.
Quote 10 : संसार को हिन्दू जाति का आदेश सुनना पड़े – ऐसी अवस्था उपस्थित होने पर उनका वह आदेश गीता और गौतम बुद्ध के आदेशों से भिन्न नहीं होगा.
Quote 11 : मनुष्य की सम्पूर्ण शक्ति का मूल उसके अहम की प्रतीति में ही विद्यमान है.
Quote 12 : वर्तमान परिस्थिति पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा – इस तथ्य की चिंता किये बिना ही इतिहासलेखक को इतिहास लिखना चाहिए और समय की जानकारी को विशुद्ध और सत्य – रूप में ही प्रस्तुत करना चाहिए.
Quote 13 : महान. हिन्दू संस्कृति के भव्य मन्दिर को आज तक पुनीत रखा है संस्कृत ने. इसी भाषा में हमारा सम्पूर्ण ज्ञान, सर्वोत्तम तथ्य संगृहीत हैं. एक राष्ट्र, एक जाति और एक संस्कृति के आधार पर ही हम हिन्दुओं की एकता आश्रित और आघृत है.
Quote 14 : प्रतिशोध की भट्टी को तपाने के लिए विरोधों और अन्याय का ईंधन अपेक्षित है, तभी तो उसमें से सद्गुणों के कण चमकने लगेगें. इसका मुख्य कारण है कि प्रत्येक वस्तु अपने विरोधी तत्व से रगड खाकर ही स्फुलित हो उठता है.
Quote 15 : ब्राह्मणों से चाण्डाल तक सारे-के-सारे हिन्दू समाज की हड्डियों में प्रवेश कर यह जाति- अहंकार उसे चूस रहा है और पूरा हिन्दू समाज इस जाति – अहंकारगत द्वेष के कारण जाति – कलह के यक्ष्मा की प्रबलता से जीर्ण – शीर्ण हो गया है.
Quote 16 : पतितों को ईश्वर के दर्शन उपलब्ध हों, क्योंकि ईश्वर पतित –पावन जो है. यही तो हमारे शास्त्रों का सार है. भगवद – दर्शन करने की अछूतों की माँग जिस व्यक्ति को बहुत – बड़ी दिखाई देती है, वास्तव में वह व्यक्ति स्वयं अछूत है और पतित भी, भले ही उसे चारों वेद कंठस्थ क्यों न हों.
Quote 17 : ज्ञान प्राप्त होने पर किया गया कर्म सफलतादायक होता है, क्योंकि ज्ञान – युक्त कर्म ही समाज के लिए हितकारक है. ज्ञान – प्राप्ति जितनी कठिन है, उससे अधिक कठिन है – उसे संभाल कर रखना . मनुष्य तब तक कोई भी ठोस पग नहीं उठा सकता यदि उसमें राजनीतिक, ऐतिहासिक,अर्थशास्त्रीय एवं शासनशास्त्रीय ज्ञान का अभाव हो.
Quote 18 : इतिहास, समाज और राष्ट्र को पुष्ट करनेवाला हमारा दैनिक व्यवहार ही हमारा धर्म है. धर्म की यह परिभाषा स्पष्ट करती है कि कोई भी मनुष्य धर्मातीत रह ही नहीं सकता. देश इतिहास, समाज के प्रति विशुद्ध प्रेम एवं न्यायपूर्ण व्यवहार ही सच्चा धर्म है.
Quote 19 : देशभक्ति का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप उसकी हड्डियाँ भुनाते रहें. यदि क्रांतिकारियों को देशभक्ति की हुडियाँ भुनाती होतीं तो वीर हुतात्मा धींगरा, कन्हैया कान्हेरे और भगत सिंह जैसे देशभक्त फांसी पर लटककर स्वर्ग की पूण्य भूमि में प्रवेश करने का साहस न करते. वे ‘ए’ क्लास की जेल में मक्खन, डबलरोटी और मौसम्बियों का सेवन क्र, दो-दो माह की जेल –यात्रा से लौट क्र अपनी हुडियाँ भुनाते दिखाई देते.
Quote 20 : परतन्त्रता तथा दासता को प्रत्येक सद्धर्म ने सर्वदा धिक्कारा है. धर्म के उच्छेद और ईश्वर की इच्छा के खंडन को ही परतन्त्रता कहते हैं. सभी परतन्त्रताओं से निकृष्टतम परतन्त्रता है – राजनीतिक परतन्त्रता और यही नर्क का द्वार है.